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निष्पक्ष चुनाव कराने की चुनौती


उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे –जैसे करीब आता जा रहा है सभी राजनीतिक दलों के साथ चुनाव आयोग भी चुस्त होता जा रहा है.दरअसल,  देश के सबसे बड़े सूबे में चुनाव के दरमियान अनियमितताओं को लेकर भारी मात्रा में शिकायत सुनने को मिलती रहती है. जिसके मद्देनजर चुनाव आयोग ने अभी से कमर कस ली है जिससे आने वाले विधानसभा चुनाव को सही ढंग से कराया जा सके. इसको ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग पूरी तरह से सक्रिय हो गया है. मुख्य चुनाव आयुक्त ने अपनी पूरी टीम के साथ लखनऊ में पुलिस के आला अधिकारियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की. जिसमें चुनाव की तैयारियों का जायजा लिया गया तथा आगे की रणनीति पर चर्चा हुई, चुनाव आयुक्त ने स्पष्ट किया है कि चुनाव से पहले सभी चिन्हित अपराधियों को जेल में डाला जाए इसके उपरांत ही भयमुक्त चुनाव कराए जा सकते हैं. इसके साथ ही मुख्य चुनाव आयुक्त ने पुलिस अधिकारियों को सख्त लहजे में कह दिया है कि चुनाव के दौरान किसी भी प्रकार की लापरवाही क्षम्य नहीं होगी. इस तरह यूपी चुनाव में जैसे राजनीतिक दल अपनी–अपनी तैयारियों में लगे हुए हैं, वैसे ही चुनाव आयोग ने भी अपनी तैयारियों में तेज़ी लाई है. उत्तर प्रदेश चुनाव कब तक होगा इसको लेकर संशय अभी बना हुआ है, लेकिन चुनाव आयोग की चुस्ती यह दर्शाती है कि अब चुनाव में बहुत लंबा वक्त नहीं बचा है. दरअसल यह चुनाव सभी राजनीतिक दलों के लिए जितना कठिन है उससे कहीं ज्यादा चुनाव आयोग को पारदर्शी चुनाव कराने की चुनौती भी है. अगर हम चुनाव आयोग की चुनौतियों की बात करें तो सबसे पहली चुनौती भय मुक्त मतदान कराने की है. जाहिर है कि प्रदेश में कुछ बाहुबली नेता चुनाव के दौरान मतदाताओं को डरा, धमकाकर अपने पक्ष में वोट करा लेते हैं. यह भारत जैसे स्वस्थ लोकतन्त्र पर कुठाराघात से कम नहीं है, मतदाता अपने प्रतिनिधि को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि वर्तमान परिवेश में यह संभव नहीं हो पा रहा है. जहाँ–तहां से ऐसी खबरें आये दिन पढ़ने को मिल जाती हैं जिसमें मतदाताओं को डराया–धमकाया जाता है, जिसके फलस्वरूप मतदाता अपनी इच्छा के विपरीत जाकर मतदान करने को विवश हो जाता है. यह स्थिति लोकतन्त्र के लिए घातक है. चुनाव आयोग ने इस मामले पर गंभीरता बरतनी शुरू कर दी है, उत्तर प्रदेश में निष्पक्ष चुनाव कराने में दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है थानों पर एक ही जाति विशेष के थानाध्यक्ष का होना. गौरतलब है कि अखिलेश सरकार की तुष्टीकरण की नीति की वजह से प्रदेश के कई अहम पदों पर एक खास जाति के लोगों का वर्चस्व बना हुआ है. पचास प्रतिशत थानों पर यादव जाति के प्रभारियों की तैनाती की गई है, ऐसे में चुनाव के समय पुलिस से निष्पक्षता की उम्मीद कैसे की जा सकती है ? हालांकि मुख्य चुनाव आयुक्त को यह शिकायत पहले से ही मिली हुई है इसलिए उन्होंने पुलिस प्रशासन पर पैनी निगाह रखने की बात कही है. ज्ञातव्य हो कि चुनाव के समय निर्वाचन आयोग अपनी नीतियों के अनुसार पुलिस बलों की तैनाती करेगा. जिसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि जिन थानों में इंस्पेक्टर स्तर की तैनाती होनी चाहिए वहां दरोगा स्तर के प्रभारी को तैनात किया गया है जो अपने पक्षपातपूर्ण से बाज़ नहीं आने वाले है. ऐसे में चुनाव आयोग ने इंस्पेक्टर स्तर के थानों की कमान उसी स्तर के अधिकारी की तैनाती के आदेश दिए हैं. चुनाव आयोग पूरी तरह सख्ती से पेश आ रहा है. कड़े लहजे में दोषी अधिकारियों को फटकार भी लगाई जा रही है. ऐसे में चुनाव से ठीक पहले मुख्य चुनाव आयुक्त का अपनी टीम के साथ यूपी दौरा यह बताने के लिए काफी है कि चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहा है और निष्पक्ष एवं भयमुक्त मतदान कराने के लिए प्रतिबद्ध है. बहरहाल, उत्तर प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 14.04 करोड़ है. चुनाव आयोग साथ ही युवाओं तथा जिनका नाम मतदाता सूची के बाहर है उसे दुरुस्त करने का काम भी कर रही है. जगह–जगह कैंपेन के जरिये मतदाता पहचान पत्र के कामों में तेज़ी आई है इसका कारण यह भी है चुनाव आयोग को अपना लक्ष्य हासिल करना है. गौरतलब है कि आगामी विधानसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग ने 75 फीसद मतदान का लक्ष्य रखा है, यह तभी संभव है जब प्रदेश की जनता को मतदान के लिए जागरूक किया जाये, उन्हें भयमुक्त किया जाये. इसके लिए अभी से निर्वाचन आयोग ने इन सभी चुनौतियों पर चर्चा शुरू कर दी है. यहाँ तक कि मतदाताओं को मतदान के लिए कहीं दूर न जाना पड़े, इसको ध्यान में रखते हुए बूथों की संख्या पिछली बार की अपेक्षा बढ़ाए जाने पर भी बात बनती दिख रही है. खैर, उत्तर प्रदेश का चुनाव निर्वाचन आयोग के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की चुनौती तो है ही, साथ ही साथ मतदान फीसद बढ़ाने की भी चुनौती है.
 

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