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कैराना का स्याह सच आया सामने


लगभग साढ़े तीन महीने पहले उत्तर प्रदेश के कैराना में हिन्दू समुदाय की पलायन की खबरें सामने आई थीं. यह पलायन चर्चा के केंद्र बिंदु में लंबे समय तक रहा किसी ने इस पलायन को सही बताया तो किसी ने इसे खारिज कर दिया, यहाँ तक की मीडिया के एक हिस्से ने भी पलायन की खबरों को नकार दिया था.जाहिर है कि उनदिनों कैराना में सब कुछ ठीक नहीं था,वहां के हिन्दूओं का जीना दूभर हो गया था, एक धर्म विशेष की उग्रता के कारण हिंदू परिवार पलायन कर रहे थे,प्रशासन मौन खड़े तमाशाबीन बनी हुई थी.स्थिति कितनी दयनीय थी इसका अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि लोग अपने घरों को बेच वहां से निकलना चाहते थे.सवाल यह उठता है कि इन सच पर पर्दा डालने की कोशिश क्यों हुई ? उस समय जो सुबूत  हमारे सामने आये उससे ही स्पष्ट हो गया था कि पलायन की घटना कैराना का काला सच है जिसे स्वीकार करना ही होगा. गौरतलब है कि हिन्दूओं में दहशत का माहौल था, लोग किसी भी तरह कैराना को छोड़ना चाहते थे ,एक समुदाय विशेष द्वारा बनाएं गय भय से मुक्ति चाहते थे इसके लिए उनके पास पलायन के अलावा कोइ चारा नही था,मकानों को बेचने के पोस्टर अपनी जन्मभूमि से बिछड़ने की पीड़ा लोगो सता रही थी उसवक्त भी लोगों ने अपनी पीड़ा कैराना में मौजूद गुंडाराज पर प्रशासन की चुप्पी पर जम कर वार किया था लेकिन सियासत के नुमाइंदों ने उनकी हक की लड़ाई हो राजनीति के कसौटी पर उतार दिया था.चूंकी उत्तर प्रदेश में हालही में चुनाव है इसके मद्देनजर कांग्रेस,सपा आदि तथाकथित सेकुलर राजनीतिक पार्टियों  ने भी अपने –अपने लोंगो को कैराना भेजकर अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए सच्चाई को कहना वाजिब नहीं समझा था. हालांकि बीजेपी इस बात को शुरू से कहती आ रही है कि कैराना का पलायन एक कठोर सत्य है जिसे सबको स्वीकार करना पड़ेगा. लेकिन सपा ,कांग्रेस आदि कथित सेकुलर दलों को यह रास नहीं आया इन दलों को केवल  अपने  वोटबैंक की चिंता सता रही थी. ऐसे में उन्होंने इस सच्चाई को स्वीकार करने की जहमत नहीं उठाई. इस तरह राजनीति से लेकर मीडिया तक सेकुलर कबीले के सभी लोगों ने इस खबर को झूठा बताया था. दरअसल यह मामला बीजेपी सांसद हुकुम सिंह ने उठाया था जाहिर है कि वोटबैंक की राजनीति करने वाले राजनेता, सेकुलरिज्म का दंभ भरने वाले बुद्दिजीवियों को यह नागवार गुजरा था. उन्होंने इस सच पर पर्दा डालने के हर संभव प्रयास किये लेकिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी जाँच में कैराना का काला सच सामने रख दिया है. रिपोर्ट में हिन्दू परिवारों के पलायन को सही पाया गया है पलायन की मुख्य वजह भी एक समुदाय विशेष की गुंडागर्दी और भय को बताया गया है. जाहिर है कि इस सच को नकारने का खूब कुत्सित प्रयास किया गया जिसमें यूपी की तथाकथित सेकुलर सरकार ने भी यह दावा किया कि पलायन की वजह मुस्लिम नहीं हैं और न वहां भय का माहौल है. लेकिन अब पलायन का स्याह सच सामने आ चुका है. मानवाधिकार आयोग  ने स्पष्ट किया है कि हिन्दूओं के पलायन की मुख्य वजह वहां पर व्याप्त गुंडाराज ही है. कैराना का मुद्दा जब प्रकाश में आया तभी से तथाकथित बुद्धिजीवियों ने यह राग अलापना शुरू कर दिया था कि यह प्रदेश में चुनाव के मद्देनजर बीजेपी वोटों का धुर्विकरण करने की कोशिश कर रही है. इस आड़ में कथित सेकुलर ब्रिगेड ने इस मामले को अफवाह बताने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. लेकिन आज यथार्त सबके सामने है, सवाल यह उठता है कि सेकुलरिज्म के झंडाबरदार इस सच को क्यों नही स्वीकार कर रहे थे ? सवाल की तह में जाएँ तो सेकुलर कबीले के लोग हमेशा से प्रो-इस्लाम रहे हैं. उनकी धर्मनिरपेक्षता का वास्ता केवल और केवल हिन्दू विरोध तक सीमित हो कर रह गया है, अखलाख के मामले में छाती कूटने वाले सेकुलरों ने मालदा की हिंसा पर चूं तक नहीं किया. ध्यान दें तो उस समय भी कटघरे में मुस्लिम समाज की उग्रता थी और कैराना में भी, क्या यह सेकुलरिज्म का ढोंग नहीं है ? ऐसे अनेकों मामलें  सामने आते हैं जब इनकी धर्मनिरपेक्षता का दोहरा चरित्र देखने को मिलता है. झूठ फरेब, अफवाहों पर टीका सेकुलरिज्म अपनी बुनियाद में कितना  ढोंग और दोमुँहापन भरा हुआ है,यह  सबके सामने आ गया है.ऐसा नहीं है कि उनकी इस तरह से भद्द पहली मर्तबा पिटी हो,याद करें तो इससे पहले जेएनयू में हुए देश विरोधी नारों के वीडियो को छेड़छाड़ की अफवाह इस गैंग ने उड़ाई लेकिन लैब रिपोर्ट ने इनको करारा तमाचा जड़ा, अख़लाक़ के घर बीफ नहीं था यह भ्रम इसी छद्म सेकुलरवादीयों के फैलाया लेकिन वहां जांच हुई तो सामने आया कि  अखलाख के घर बीफ ही था तब भी इनकी बोलती बंद हो गई थी.अब कैराना की रिपोर्ट भी इनकी गाल पर करार तमाचा जड़ा है.पलायन  की घटना को सिरे से खारिज करने वाले सेकुलर लोग रिपोर्ट के आने के बाद बगले झाँकने लगें है.

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