Skip to main content

आरक्षण पर व्यापक विमर्श की जरूरत


राजस्थान ,गुजरात  के बाद आरक्षण के जिन्न ने हरियाणा को अपनी जद में ले लिया है.हरियाणा में आरक्षण की मांग को लेकर जाट समुदाय के लोग सड़को पर उतर आएं हैं.पिछले सात दिनों से जाटों का चल रहा आंदोलन शुक्रवार से हिंसक हो गया है.प्रदर्शनकारी जगह –जगह गाडियों को जला दे रहें है ,रेलवे की पटरियों को उखाड़ दे रहें है, हाइवे को जाम कर दिए है.जिससे आवागमन पूरी तरह से बाधित है.पांच सौ से अधिक ट्रेनों को रदद् कर दिया है,सैकड़ो ट्रेनों के रूट को  बदल दिया गया है.आठ जिलों में फैले इस आंदोलन में रोहतक और भिवानी के हालात सबसे ज्यादा खराब है.उग्र होते प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने रोहतक और भिवानी में इंटरनेट को भी बंद करा दिया है.हिंसा के मध्यनजर राज्य सरकार ने पहले कर्फ्यू लगाया,इसके बावजूद जब स्थिति नियंत्रण में नही दिखी तो देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए.इस आदेश का भी कोई प्रभाव प्रदर्शनकारियों पर होता नही दिख रहा है.स्थिति बेकाबू होती चली जा रही है,प्रदर्शनकारियों और पुलिस की भिंडत में अभी तक आठ लोग अपनी जान गवां चुके है.आंदोलन कितना व्यापक है इसका अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बाहर से सेना बुलाने के बाद भी स्थिति पर पूरी तरह से काबू नही पाया जा सका है. प्रदर्शनकारियों को हिंसा से रोकने में अभी तक शासन तथा प्रशासन विफल रहें हैं.हंगामे को थमता हुआ नही देख हरियाणा सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े जाटों को आरक्षण देने की बात कही है. वही केंद्र सरकार ने भी भरोसा दिलाया है कि उनकी मांगो पर जल्द ही सरकार सहमती देगी.उनकी मुख्य मांग ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण देने का है,बहरहाल शुक्रवार को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस आपात स्थिति को काबू करने तथा इस मसले का हल निकालने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई,जिसमें उन्होंने जाटों के आरक्षण के मसले पर सबकी सहमती के बाद यह फैसला लिया .राज्य सरकार ने समीक्षा के लिए एक कमेटी का गठन किया है,जो 31 मार्च को रिपोर्ट पेश करेगी.बहरहाल, ये पहली बार नही है जब जाट आरक्षण के लिए सडको पर उतरे हो इनके आंदोलन का एक लंबा इतिहास रहा है,जब कोई चुनाव आता हमारे राजनेता वोटबैंक के लिए जाटो को आरक्षण देने की वकालत करने से नही चुकते परन्तु सत्ता में आने के बाद अपने स्वभाव के अनुकूल अपने वादों को भूल जाते है.जिससे जाट हर बार अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है.इसमें कोई दोराय नही कि जाट हरियाणा में समृद्ध समुदाय है लेकिन उनके आरक्षण की मांग को हवा हमारे सियासतदानों ने ही दिया है.विगत लोकसभा चुनाव के ठीक पहले यूपीए सरकार ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए हरियाणा समेत 9 राज्यों के जाटों को ओबीसी में लाने का फैसला किया जिसका विरोध राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने किया.मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और कोर्ट ने जाटों को पिछड़ा मानने से इनकार कर दिया .17 मार्च 2015 को सरकार के इस फैसले को कोर्ट ने रदद् कर दिया था.फिर सत्ता में आई मोदी सरकार ने कोर्ट के इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर की जिसे बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया और अपने पिछले आदेश को सही बताया.बार –बार सुप्रीम कोर्ट के इनकार के बाद जाट समुदाय के द्वारा आरक्षण की मांग करना दुर्भाग्यपूर्ण है.आज हमारे समाज में जातिगत आरक्षण के चलते समाज बट रहें है,एक जाति दूसरे जाती के बीच जातीय टकराव बढ़ रहा है.ऐसे में सवाल उठता है कि इस समस्या का हल क्या है ? वर्तमान परिस्थितियों पर गौर तो कोई भी राजनीतिक दल आरक्षण को समाप्त करने की बात तो दूर उसकी समीक्षा की बात कहने तक से हिचकिचाते है.ऐसे में आरक्षण खत्म करना दूर की कौड़ी है.आरक्षण को खत्म हरगिज़ नहीं किया जा सकता, वंचितों और समाज के सबसे पिछड़े पायदान पर रहने वाले गरीब लोगो को मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण सहायक है.लेकिन,इस बात से मुंह नही मोड़ा जा सकता कि  आज आरक्षण का इस्तेमाल वैसाखी के रूप में  हो रहा है.असल में जिन दलित,अल्पसंख्यक या अन्य वंचित जातियों को आरक्षण की जरूरत है,उन्हें ये लाभ अभी तक नहीं मिल पा रहा है.आज पाटीदार,गुर्जर जाट आरक्षण की मांग कर रहें है ,कोर्ट के इनकार के बावजूद सरकार में ये साहस नही है कि इन्हें आरक्षण देने से मना कर दे,दरअसल आरक्षण हमारे राजनीतिक दलों के लिए वोट का साधन बन गया है ,जब चुनाव समीप होता आरक्षण का सहारा लेकर  समाज को लुभाने का प्रयास करते है,भारतीय संविधान में अनुच्छेद 15 व 16 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग को आरक्षण का लाभ दिया जाए बशर्ते ये सिद्ध हो जाए कि वो औरो की अपेक्षा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से कमजोर है.कोर्ट के फैसले के बाद ये सिद्ध होता है कि जाट समुदाय आरक्षण की बेतुकी मांग कर रहें है,जो भारतीय संविधान के अनुरूप नही है.हरियाणा सरकार के लिए जाटों के आरक्षण के लिए जो कमेटी बनाई है,वो क्या रिपोर्ट पेश करती है ये बाद की बात होगी.दरअसल,हमारे राजनीतिक दलों ने आरक्षण के नाम पर समाज को पहले विभाजित किया फिर आरक्षण के बहाने खूब सियासत साधने का काम हमारे हुक्मरानों ने किया और अब भी कर रहे हैं. इनके इस रवैये से देश में व्यापक बहस जो आरक्षण को लेकर होनी चाहिएं थी वो आज तक नही हुई.नतीजन आज आरक्षण के लिए कुछ समुदाय हिंसा पर भी उतारू हो चलें हैं.इस पर भी सरकारें मौन रहती है.बहरहाल,जब आरक्षण को लागू करने के बात आई थी तब संविधान सभा के अध्यक्ष डा.अम्बेडकर ने कहा था कि हर दस साल के बाद सरकार इसकी समीक्षा करेगी कि जिनको आरक्षण दिया जा रहा है उनकी स्थिति में कुछ सुधार हुआ या  नहीं? उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि यदि किसी वर्ग का विकास हो जाता है तो उसके आगे की पीढ़ी को इस व्यवस्था से वंचित रखा जाए.इस समीक्षा का मतलब ये था कि जिन उद्देश्यों के लिए आरक्षण को प्रारम्भ किया गया है.वो कितनी कारगर साबित हुई है.लेकिन आज तक किसी राजनीतिक दल में इतनी शक्ति नहीं हुई की आरक्षण की समीक्षा करवा सकें. आरक्षण खत्म करना समाज के वंचित वर्ग के साथ बेमानी होगी परन्तु अब समय आ गया कि सरकार आरक्षण की समीक्षा करें एवं इसके मानको में बदलाव करें है,क्या किसी राजनीतिक दल ने वोट बैंक से इतर इस बात को कभी सोचा है ? किसी राजनीतिक दल ने आरक्षण की इस खोट को दूर करने का प्रयास किया है ? आरक्षण में सुधार की दरकार है.अगर हम सुधार की बात करें तो हमारे पास आरक्षण के खोट को दूर करनें के कई उपाय है.मसनल सरकार आरक्षण को आर्थिक रूप से लागू करती है तो इसके अनेकानेक लाभ है.गरीब हर वर्ग के लोग है.चाहें वो दलित हो या सवर्ण अगर सभी को आर्थिक आधार मान कर आरक्षण दिया जाएँ तो सभी तबके के गरीब लोगो को इससे मदद मिलेगी और आरक्षण उनके विकास में सहायक सिद्ध होगा.अगर समय रहते आरक्षण की समीक्षा के लिए केंद्र सरकार कोई कमेटी गठित नही करती तो,वो दिन दूर नही जब देश के सभी समुदाय आरक्षण के लिए सड़को पर होंगे.सरकार को आरक्षण के मसले पर व्यापक विचार –विमर्श करने की आवश्यकता है,जिससे आने वाले दिनों में कोई और समुदाय आरक्षण के लिए हिंसक न बने बहरहाल,आरक्षण के नाम पर आज जिसप्रकार कुछ समुदाय हिंसा पर उतारू हो गएँ है,वो दुर्भाग्यपूर्ण है.

Comments

Popular posts from this blog

भारत माता की जय के नारे लगाना गर्व की बात

      भारत माता की जय के नारे लगाना गर्व की बात -:   अपने घृणित बयानों से सुर्खियों में रहने वाले हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी इनदिनों फिर से चर्चा में हैं.बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए ओवैसी बंधु आए दिन घटिया बयान देते रहतें है.लेकिन इस बार तो ओवैसी ने सारी हदें पार कर दी.दरअसल एक सभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा कि हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा की भारत माता की जय बोलना जरूरी है,चाहें तो मेरे गले पर चाकू लगा दीजिये,पर मै भारत माता की जय नही बोलूँगा.ऐसे शर्मनाक बयानों की जितनी निंदा की जाए कम है .इसप्रकार के बयानों से ने केवल देश की एकता व अखंडता को चोट पहुँचती है बल्कि देश की आज़ादी के लिए अपने होंठों पर भारत माँ की जय बोलते हुए शहीद हुए उन सभी शूरवीरों का भी अपमान है,भारत माता की जय कहना अपने आप में गर्व की बात है.इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अपने सियासी हितो की पूर्ति के लिए इस हद तक गिर जाएँ कि देशभक्ति की परिभाषा अपने अनुसार तय करने लगें.इस पुरे मसले पर गौर करें तो कुछ दिनों पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भाग

लोककल्याण के लिए संकल्पित जननायक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना 70 वां जन्मदिन मना रहे हैं . समाज जीवन में उनकी यात्रा बेहद लंबी और समृद्ध है . इस यात्रा कि महत्वपूर्ण कड़ी यह है कि नरेंद्र मोदी ने लोगों के विश्वास को जीता है और लोकप्रियता के मानकों को भी तोड़ा है . एक गरीब पृष्ठभूमि से निकलकर सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने की उनकी यह यात्रा हमारे लोकतंत्र और संविधान की शक्ति को तो इंगित करता ही है , इसके साथ में यह भी बताता है कि अगर हम कठिन परिश्रम और अपने दायित्व के प्रति समर्पित हो जाएँ तो कोई भी लक्ष्य कठिन नहीं है . 2001 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बनते हैं , यहीं से वह संगठन से शासन की तरफ बढ़ते है और यह कहना अतिशयोक्ति   नहीं होगी कि आज वह एक अपराजेय योध्हा बन चुके हैं . चाहें उनके नेतृत्व में गुजरात विधानसभा चुनाव की बात हो अथवा 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव की बात हो सियासत में नरेंद्र मोदी के आगे विपक्षी दलों ने घुटने टेक दिए है . 2014 के आम चुनाव को कौन भूल सकता है . जब एक ही व्यक्ति के चेहरे पर जनता से लेकर मुद्दे तक टिक से गए थे . सबने नरेंद्र मोदी में ही आशा , विश्वास और उम्मीद की नई किरण देखी और इतिहास

लंबित मुकदमों का निस्तारण जरूरी

     देश के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर बेटे विगत रविवार को मुख्यमंत्रियों एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीशों के सम्मलेन को संबोधित करते हुए भावुक हो गये.दरअसल अदालतों पर बढ़ते काम के बोझ और जजों की घटती संख्या की बात करतें हुए उनका गला भर आया.चीफ जस्टिस ने अपने संबोधन में पुरे तथ्य के साथ देश की अदालतों व न्याय तंत्र की चरमराते हालात से सबको अवगत कराया.भारतीय न्याय व्यवस्था की रफ्तार कितनी धीमी है.ये बात किसी से छिपी नहीं है,आये दिन हम देखतें है कि मुकदमों के फैसले आने में साल ही नहीं अपितु दशक लग जाते हैं.ये हमारी न्याय व्यवस्था का स्याह सच है,जिससे मुंह नही मोड़ा जा सकता.देश के सभी अदालतों में बढ़ते मुकदमों और घटते जजों की संख्या से इस भयावह स्थिति का जन्म हुआ है.गौरतलब है कि 1987 में लॉ कमीशन ने प्रति 10 लाख की आबादी पर जजों की संख्या 50 करनें की अनुशंसा की थी लेकिन आज 29 साल बाद भी हमारे हुक्मरानों ने लॉ कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की जहमत नही उठाई.ये हक़ीकत है कि पिछले दो दशकों से अदालतों के बढ़ते कामों पर किसी ने गौर नही किया.जजों के कामों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई.केसो